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Brinjal Cultivation in Hindi: बैंगन की खेती इस तरीके से करें किसान, रोगों से मुक्ति के साथ बढ़ जाएगी उपज

Brinjal Cultivation in Hindi: बैंगन की खेती इस तरीके से करें किसान, रोगों से मुक्ति के साथ बढ़ जाएगी उपज
बैंगन की खेती इस तरीके से करें किसान

देश में लाखों किसान सब्जियों की खेती भी करते हैं। इन्हीं में से एक है बैंगन। बैंगन को लोग सब्जी, भरता या अन्य तरीकों से खाते हैं। बैंगन की मांग ज्यादा रहने के कारण किसानों को इससे फायदा भी होता है। किसानों की यह फसल अच्छे दाम में बिक जाती है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बैंगन की खेती सही तरीके से की जाए ताकि इसमें कोई रोग भी ना लगे और पैदावार भी ठीक हो। इस खबर में हम इन्हीं तरीकों पर बात करेंगे।

बैंगन की खेती का सही तरीका Right Way to Brinjal Cultivate:

बैंगन की खेती देश में पूरे साल की जाती है। इसे लगभग सभी जगहों पर उगाया जाता है। मौसम के हिसाब से बैंगन की अलग-अलग किस्में उगाई जाती हैं। किसान एक एकड़ में 4-6 हजार बैंगन के पौधे लगा सकते हैं। ध्यान रखें कि बैंगन के पौधे बहुत बड़े होते हैं, इसलिए दो पौधों के बीच अच्छी मात्रा में जगह छोड़ना जरूरी है, ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें। पौधों के बीच जगह बनी रहेगी तो उनका विकास अच्छे से होगा।

ये चीजें हैं अहम:

बैंगन की खेती 6x3 फीट के आधार पर करना बेहतर होता है। दो पौधों के बीच की दूरी 3 फीट और दो पंक्तियों के बीच की दूरी 6 फीट रखी जाती है। इससे न केवल पौधों को बढ़ने के लिए जगह मिलती है, बल्कि कटाई भी आसान हो जाती है। किसानों को बैंगन की खेती में ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए, ताकि जल का संरक्षण हो सके और पौधों की सिंचाई ठीक से हो सके। वहीं बैंगन की फसल को कीटों से भी बचा के रखने की जरूरत होती है। कई बार बैंगन की पत्तियां छोटी रह जाती है। जिस कारण फल भी नहीं लगते।

रोगों से ऐसे करें बचाव How to Protect yourself From Diseases:

बैंगन के इस रोग को छोटी पत्ती रोग से जाना जाता है। इस रोग के आक्रमण से पत्तियां छोटी रह जाती हैं और गुच्छे के रूप में तनों पर उगी हुई दिखाई देती हैं। पूरा रोगग्रस्त पौधा झाड़ी जैसा दिखता है और ऐसे पौधों में फल नहीं आते हैं। इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। यह रोग हरे तेले से फैलता है इसलिए इसकी रोकथाम के लिए फास्फोनिडान 85 एस का प्रयोग किया जाता है। एल 0.5 मि.ली. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद यह छिड़काव करना चाहिए।

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