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Cinnamon Cultivation: दालचीनी की खेती कैसे करें, इसके लिए कौन सी खाद और मिट्टी तथा जलवायु कैसी होनी चाहिए, जाने khetivyapar पर

Cinnamon Cultivation: दालचीनी की खेती कैसे करें, इसके लिए कौन सी खाद और मिट्टी तथा जलवायु कैसी होनी चाहिए, जाने khetivyapar पर
दालचीनी की खेती कैसे करें

मसालों के रूप में उपयोग की जाने वाली दालचीनी का अपना ही एक महत्व है। आज हमारी रसोई बिना इस मसाले के फीकी है। दालचीनी ने हर व्यंजन में अपना एक अलग ही स्थान बनाया है। बात चाहे शाकाहारी हो या माँसाहारी व्यंजन की, बिना दालचीनी के स्वाद कहाँ मिलता है? इन्ही सब वजह से बाजार में दालचीनी के मांग में खूब बढ़ोतरी हुई है। दालचीनी की खेती से बाजारों में बेचने पर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

दालचीनी की जानकारी Cinnamon Information:

दालचीनी  वृक्ष की छाल को औषधि और मसालों के रूप में प्रयोग किया जाता है। दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ होता है, जो 10–12 मीटर ऊँचा होता है। दालचीनी सिन्नेमोमम ज़ाइलैनिकम ब्राइन (Cinnamomum zeylanicum Breyn) नामक पेड़ की छाल का नाम है जिसे अंग्रेजी में ‘कैशिया बार्क‘ का वृक्ष कहा जाता है। दालचीनी के पेड़ अधिकतर श्रीलंका और दक्षिण भारत में पाये जाते हैं।

खेती के लिए उपयुक्त जलवायु Suitable climate for farming:

दालचीनी की खेती के लिए अनुकूल जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता होती आवश्यकता होती है। यह 1,000 मीटर की ऊंचाई पर अच्छी तरह से बढ़ता है और 200-250 सेमी की वार्षिक वर्षा इसकी खेती के लिए आदर्श है। दालचीनी व्यावसायिक रूप से एक वर्षा आधारित फसल के रूप में खेती की जाती है।

दाल चीनी से होने वाले अदभुद फायदे:

  • दालचीनी में उपस्थित पोलीफेनॉल में एंटीऑक्स‍िडेंट होता है जो की इसे को सुपरफूड का दर्जा दिलाता है।

  • इसका सेवन करने से शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्र‍िग्लीसेराइड्स का स्तर कम होता है जिससे उच्च वसायुक्त भोजन का प्रभाव कम हो जाता है।
  • इसका सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और संक्रामक रोगों का खतरा कम हो जाता है।
  • इसके तेल का प्रयोग दर्द, घाव और सूजन को समाप्त करने के लिए किया जाता है। इसके तेल से त्वचा की खुजली को भी खत्म करने के साथ, दांतों के दर्द में भी राहत देती है।
  • सर्दी जुकाम या गले की विभिन्न समस्या पर भी ये बहुत लाभकारी साबित होती है। इसके प्रतिदिन सेवन से आप सर्दी लगने जैसी समस्या से भी निजात पा सकते हैं।

दालचीनी के सेवन से होने वाले कुछ नुकसान: खाने में यदि दालचीनी मसाले का अधिक उपयोग करेंगे तो इससे सांस की समस्या पैदा होने का डर हो सकता है। गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से दूर ही रखना चाहिए। इसका उपभोग अत्यधिक मात्रा में करने से किडनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

दालचीनी की किस्में: भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, ने उच्च गुणवत्ता और अधिक पैदावार देने वाली दालचीनी की दो किस्में विकसित की हैं, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाती है। पहली नवश्री और दूसरी नित्यश्री है। इन किस्मों की उत्पादन क्षमता क्रमशः 56 और 54 कि.ग्रा. सूखी छाल हेक्टेयर प्रति वर्ष है। 

दालचीनी की खेती कैसे करें: दालचीनी की खेती के लिए रेतीले दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। दालचीनी की खेती वर्ष में दो बार निराई, जून-जुलाई और अक्तूबर-नवंबर में करनी चाहिए तथा पौधों के चारों ओर भूमि की गुड़ाई भी करनी चाहिए। पहले वर्ष में 20 ग्राम नाइट्रोजन, 18 ग्राम फास्फोरस और 25 ग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। जब पौधे दस साल के या उससे अधिक हो जाते हैं, तब 200 ग्राम नाइट्रोजन, 180 ग्राम फोसफोरस और 200 ग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग दो समान मात्राओं में मई-जून और सितंबर-अक्तूबर में करना चाहिए। गर्मी के मौसम में हरे पत्तों से पलवार करने की और मई-जून में 25 कि.ग्रा. गोबर की खाद के प्रयोग करना चाहिए।

बुवाई की सही विधि: दालचीनी की खेती के लिए बीज को पौधा बनाकर तैयार किया जाता है फिर उसको खेत में रोपा जाता है। मिटटी को क्यारी बनाकर खेती की जाती है तथा खेती की तैयारी करते समय जल जमाव न हो सके।

दालचीनी के पौधे की सिंचाई कैसे करें: दालचीनी की खेती एक वर्षा आधारित फसल है जो 180 सेमी. से 220 सेमी. की वार्षिक वर्षा आदर्श है। गर्मियों के महीनों में दालचीनी के पौधे में पानी एक सप्ताह में 2 बार  दिया जाता है। पानी की मात्रा पौधों की मिट्टी की नमी का स्तर पर निर्भर करता है। 

रोग तथा रोग की रोकथाम:

  1. पत्र दाग: इस रोग से दालचीनी के पत्तों पर भूरे रंग के छोटे गहरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं, और पत्तों में छिद्र हो जाते हैं जो बाद में पूरा पत्ता रोग ग्रस्त हो जाता है तथा रोग तने तक फैल जाता है और पूरा पौधा सूख जाता है। इस रोग के पर नियंत्रण के लिये रोगग्रस्त शाखाओं की कटाई और 1% बोर्डो मिश्रण के छिड़काव कर सकते हैं।
  2. चित्ती रोग:  यह रोग फफूँद के कारण पौधों में चित्ती रोग होता है। यह रोग पौधशाला में ही पौध के तने पर दिखाई देता है, परिणाम स्वरूप पौध मर जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिये 1% बोर्डो मिश्रण के छिड़काव किया जा सकता है।
  3. पत्तियों में सुरंग: यह कीट बरसात में  कीट बरसात में लगता है जो की इसकी पत्तियों में सुराग बनाने का काम करता है इसलिए कोशिश करनी चाहिए की इससे बचाव हो सके।

फसल की कटाई: पौधे जब 12 से 15 मीटर तक ऊँचे हो जाते हैं तब इसकी कटाई का सही समय आ जाता है। पोधे की छाल को तोड़कर एकत्रित कर लिया जाता है इसके बाद में बाजार बेच सकते हैं।

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माल की बिक्री कहा करें: माल को चाहें तो साबुत तरीके से भी बेच सकते हैं नहीं तो आप पाउडर बनाकर भी बेच सकते हैं। साबुत की मांग बहुत अधिक की जाती है। आप इससे अपने नजदीकी मसाला मंडी से जाकर संपर्क कर सकते हैं नहीं तो आप राज्य की मंडी से जाकर भी संपर्क कर सकते हैं।

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