A new hope for crop rotation in agriculture in Hindi: फसल चक्र कृषि के लिये एक नई उम्मीद

A new hope for crop rotation in agriculture in Hindi: फसल चक्र कृषि के लिये एक नई उम्मीद
A new hope for crop rotation in agriculture in Hindi: फसल चक्र कृषि के लिये एक नई उम्मीद

भारत में किसानों में अनादिकाल से फसल उगाने की परम्परा जरूरत अनुसार रही है, इसलिए बदलकर फसल उगाना लाभदायक रहा है। इससे मिट्टी की शक्ति और उसकी उत्पादक क्षमता और कीटाणुओं से बचने में कृषि में किसानों का लाभ मिला है। आधुनिक कृषि युग में सामान्य तौर पर किसान बाजार की जरूरत अनुसार फसल लेते हैं और फसल चक्र अपनाने में कुछ ही किसान इसका प्रयोग कर लाभ ले रहें हैं। यह वैज्ञानिक अनुसंधान की खोज है कि फसल चक्र अपनाने से और उसके दिए गए लाभ समझकर किसान अपनी भूमि की क्षमता और साथ ही लाभदायक फसल दोनों ही ले सकता है।

फसल चक्र क्या है?

यह मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने, मिट्टी के पोषकता को अनुकूलित करने, और कीट और खरपतवार के दबाव का खात्मा करने के लिए एक ही भू-भाग में अलग-अलग फसलों के अनुक्रमाणिक रूप से उगाने की प्रक्रिया है। भारत में फसल रोटेशन एक महत्वपूर्ण कृषि प्रयास है जिसमें समय के साथ समांतर रूप से विभिन्न फसलों को एक ही भूमि पर उगाने का व्यवस्थित ्रक्रिया है। यह प्राचीन कृषि परम्परा पर आधारित कृषि उत्पादकता को बढाने और जमीन को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण है। फसल चक्र भारत के कृषि विकास का एक मजबूत स्तंभ बनने की क्षमता रखता है।

फसल चक्र मे लाये गये प्रयोगात्मक विवरण:

  1. चुनी गई फसलों की एवं जगह की जलवायु की स्थिति के अनुकूल और वैज्ञानिक रूप से उचित होना चाहिए। जैसे- मिट्टी का पी.एच. मान, मिट्टी की गुणवत्ता आदि।
  2. फसल के चयन और उसका फसल चक्र भूमि से जुड़ी और उपज से जुड़ी क्षेत्रीय समस्यानुसार होना चाहिए और किसान के आर्थिक स्थिति के अनुकूल होना चाहिए।
  3. फसल चक्र अपनाने से पहले किसान को लगाई गई फसल की आर्थिक उपयोगिता बाजार के मांग के अनुसार अच्छे से समझनी चाहिए।
  4. सामान्यतः एक ही परिवार की फसल को एक के बाद एक, एक ही स्थान पर नहीं उगाना चाहिए। इससे कीट और रोंगों से बचा जा सकता है, और मंहगी कीटनाषक दवाईयों से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
  5. गुच्छबंधीय फसलें अनागुच्छबंधीय फसलों के बाद उगाई जानी चाहिए।
  6. गुच्छाबंधीय फसलें पृथ्वी वायु में नाईट्रोजन को बनाये रखने में मदद करती है।
  7. गुच्छाबंधीय फसलें मिट्टी में ज्यादा आर्गेनिक पदार्थ छोड़ती हैं।
  8. जिन फसलों में खरनी वाली जड़े हों तो उनके उत्पादन पश्चात् झुकने वाली जड़ वाली फसलें उगानी चाहिए। इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की उचित बढ़ोत्तरी होती है।

फसल चक्र से जुड़े फायदे:

  1. यह मिट्टी की गुणवत्ता बढाता है और मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बनाये रख उसे सामान्य रखता है।
  2. मिट्टी को अपघटन से बचाता है।
  3. खेतों में जड़ नियंत्रण रखता है।
  4. मिट्टी को विषाक्त नहीं होने देता है।
  5. कीट और रोगों से नियंत्रण रखता है।
  6. मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ने से फसलों को भी फायदा होता है।

फसल चक्र कैसे अपनायें:

फसल चक्र अपनाने की विधि मूलभूत आधारों से संबंधित है जिससे ली गई जमीनी जानकारी और जमीनी आंकड़े सही फसल चक्र की उपयोगिता दिखाएगा ।

  1. किसान भाईयों को आवश्यक है कि वह दलहनी फसलों के बाद अदलहनी फसलों का उत्पादन करें।
  2. अधिक मात्रा में पोषक तत्व लेने वाली फसलों के बाद खेतों में परती रखना आवश्यक है। परती पर आधारित फसल चक्र के कुछ उदाहरण हैं परती आलू, परती सरसों, धान परती, या परती गेहूँ। दलहन फसलों पर आधारित फसल चक्र मुख्यतः गेहूँ-मूंग, चना-ज्वार, चना-बाजरा, चना-धान, मटर-कपास, अरहर-मूंगफली, मटर-धान, मेंथा-मटर, मेंथा-मसूर आदि। सफल कृषि चक्र और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान से भारत को कैसे मिलेगा लाभः मिट्टी का स्वास्थ्य सुधार और स्वास्थ्य केन्द्र के फायदे- विभिन्न देशों की फसल चक्र में अपनाये गए आधुनिक तरीके से सीखकर भारत में फसल चक्र का सफल परीक्षण किया जा सकता है। और फसल की उत्पादन क्षमता में वृद्धि किया जा सकता है।

फसल चक्र में सहनषीलता और विविधता - अन्य देशों की सफल फसल चक्र को अपनाकर सहनशीलता तथा विविधता को भारत देश में लाना चाहिए। फसल चक्र द्वारा विभिन्न कृषि प्रणाली से भारत की खेती को जलवायु परिवर्तन तथा तनावों प्रति सहनशील बना सकते हैं।

फसल चक्र में रोगों और कीटों से बचाव - विभिन्न देशों के फसल चक्र में अपनाये गये कीटों तथा उनके रोगों से बचाव को भारत देश में अपनाया जा सके। जिससे देश रासायनिक कीटनाशकों और पैथोजन्स के जीवन चक्र को कम कर सके। FAO (Food Agriculture Organization) यू.एन.ओ. (संयुक्त राष्ट्र) की कृषि आधारित संस्था- विश्व भर में फसल चक्र आधारित विषय पर सतत् प्रयास किया है। इसके अंतर्गत इस संगठन में ज्ञान साझा करने और क्षमता निर्माण में विस्तार से कार्यक्रम और सेमिनार आयोजित किये हैं। यह गतिविधियाँ फसल चक्र कृषि प्रथाओं को समझने और उसे अपनाने की दिशा में मदद करने में सक्षम है। इसके अलावा यह संगठन किसान क्षेत्र विद्यालय (के.वी.एस.) की स्थापना का
समर्थन करता है जो किसान समुदाय के आधारित शिक्षा केन्द्र बन सकते हैं। जहाँ किसान कृषि तकनीकि सहित फसल चक्र के बारे में अनुभव और ज्ञान पा सकते हैं। के.वी.एस. किसानों को एक-दूसरे से और विशेषज्ञों से सीखने का एक मंच प्रदान करता है।
भारत में अग्रणीय कृषि संस्थायें जैसे आई.सी.ए.आर. उनसे जुड़े किसान विज्ञान केन्द्र साथ ही राज्य आधारित कृषि संस्थायें एवं कृषि विद्यालय भी फसल चक्र से जुड़ी हर समस्या का स्थानीय हल विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर देते रहते हैं।

 

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